कवयित्री वसुंधरा पाण्डेय की 8 कवितायेँ
’मेरे लिए कविता लिखना सांस लेने जैसा है – मुझमें जीवन ऊर्जा का संचार करती हैं कवितायेँ /और मेरा मानना है कि कविता में प्राण तत्वों की उपस्थिति प्रेम और करुणा से ही सृजित की जा सकती है मेरी कवितायेँ मेरे आत्मिक संसार को रौशन करती है और मुझे जीवंत’’-------------------------------------------------------------------------- वसुंधरा पाण्डेयजब फूल सा दिलहो जाए पत्थरतो कोई क्या करे ?’--मैंने पूछा‘प्यार मेंपिघल जाते हैं पत्थर भी’--उसने टोकाशायदउसे मालूम ना थाफूलमिट्टी हवा पानी में खिलते हैंपत्थरलावे में उबल कर निकलते हैं ...!आम्रपालीवह प्राणों सी प्रियउमगता यौवनउफनती इच्छाएं लिए बड़ी हो रही थीललाट परचिंता की रेखा लिएकुंचित हुई बाबा की भृकुटीसहस्त्राधिक बालिकाएं भीइस कुसुमकुञ्ज-कलिका समानहो सकती हैं क्या ?इतनी गंध, कोमलता,सौन्दर्य भला और किस पुष्प में है ?दिन-दुगुनी, रात-चौगुनीअप्रतिम सौन्दर्य-लहरी..तभी तो बचपन में हीले भागे थे अपने गाँवभय था,वज्जियों के धिकृत नियम सेकहीं बिटिया 'नगरवधू' ही नबना दी जाएपर होनी को कब, कौन टाल सका है ?बिटिया के मन में उठीएक कंचुकी की चाहउस वृद्ध महानामन को लौटा लाईवैशाली में फिर सेजिसने रच रखा थाआम्रपाली का भविष्यअपने नियमानुसारकुलवधू नहीनगरवधू बनना थाउस अभिशप्त सौन्दर्य कोवंचित करते हुए उसेउसकी नैसर्गिक प्रीत सेक्या आज भीवैशाली के उस नियम में कोईबदलाव नजर आता है ...?तुम्हारी ख़ामोशीतोड़ती है मुझेदेखो तो बरौनियोँ परओस की बूंदें झूल आई हैँथोड़ा झुको नअपने गुलाब सेपंखुड़ियोँ को रख देखोनही रख सकोगे न ?हाँ... मत रखोखारेपनतुम्हारे स्न'युओँ मेँ भीन जायेगाऔर ओठो की गुलाबीपन नष्ट न हो जायेयूँ ही झूलने दो इसकी तो फितरत हैभींगने और सूख जाने की ... !जाओ...चले जाओपर जाओगे कहाँ ?तेरी अनुपस्थिति भीमेरे लिए एक उपस्थित हैना निकले सूरजतेरा उजाला दिल से जानेवाला नहींअब तो बिना चाँद के भीमेरी रातें चांदनी हो जाती हैंअंतस में नदिया की तरहजीवन की तरहशब्द-शब्द तुम मेरी रगों में बहते हो...जाओपर मुझे छोड़ कर,जाओगे कहाँ... ?बहावदार ध्वनियों मेंरंगा शहरहार्न बजाते साफ़-सुथरे लोगखूशबूदार औरतेंहँसते हुए से लगते हैंशायद रंग में भंगयाभंग में रंग का हुडदंग...गीत और उनकी हर कड़ी के बादढोलकों की ठनक थम सी जाती है !कभी कहीं ख़ामोशी के झटके सेमध्य लय लिए सितार की गतउचे स्वर में उभरती हैनिशब्दता मेंस्पष्ट अनुगूँज छोडती, खो जाती हैबस एक 'मै'किसी बरसाती नाले कीझुर्रीदार सतह पर एक तिनके सीउठती गिरती बहे जा रही हूँ ....अचानक सेतेज रौशनी का सैलाब छोडती हुई ढोलकें,मेरा वजूदतुम पर टिक गया है ...!सन्नाटे तोड़तीपटरियाँ चीरतीधरड़-धरड़ रेलपा ही लेती है मंजिलेंपर यह दिलदिन-रात धड़कता बावरा दिलकितना ही चाहेतुम तक पहुंच पाना,वहीं का वहीं रहता हैजहाँ से चलता है...!सिंदूरबचपन में
माँ को सिंदूर लगाते देख
जिद की थी मैंने भी
माँ
मुझे भी लगाना है सिंदूर
मुझे भी लगा दो न
तब माँ ने समझाया था-ऐसे नहीं लगाते
बहुत कीमती होता है यह
घोड़ी पे चढ़के एक राजा आएगा
ढेरों गहने लाएगा
तुमको पहनाएगा
फिर सिंदूर तुम्हे ‘वही’ लगाएगा
रानी बनाके तुम्हे डोली में
ले जाएगा
तब उन बातों को, पलकों ने
सपने बना के अपने कोरों पे सजायाबड़ी हुई
देखा…बाबा को भटकते दर-बदर
बिटिया की माँग सजानी है
मिले जो कोई राजकुमार
सौंप दूँ उसके हाथों में इसका हाथराजकुमार मिला भी पर
शर्त-दर-शर्त
‘आह’
किस लिए
चिटुकी भर सिंदूर के लिए‘उफ्फ’…..माँ
क्या इसे ही राजकुमार कहते हैं ?काश! बचपन में यह बात भी बताई होती
राजकुमार तुम्हारी राजकुमारी को
ले जाने लिए इतनी शर्तें मनवाएगातुम्हारी मेहनत की गाढ़ी कमाई
ले जाएगा
तुम्हारी राजकुमारी पर आजीवन
राजा होने का हुक्म चलाएगा
तो सिंदूर लगाने का सपना
कभी नहीं सजाती.कभी नहीं माँ .. .. .. !कई बार कई ख़तपसीने और आंसुओं सेनक्काशी थी उनकी इबारतहर बार वर्जनाओं के हाथोंचिंदी-चिंदी होते रहे...!अबतुमसे मिलकर लिखने हैं मैंनेवर्जनाओं के नाम फिर से वे सारे ख़तऔर उनमें छिपाने हैं अपने छोटे-छोटे प्रेम...!--प्रकाशन-- प्रथम कविता संग्रह - 'शब्द नदी है' (बोधि प्रकाशन, जयपुर) से'स्त्री होकर सवाल करती है ' (बोधि प्रकाशन, जयपुर) और 'सुनो समय जो कहता है’(आरोही प्रकाशन, दिल्ली) में कवितायेँ संकलित इसके अतिरिक्त कथादेश , अहा जिंदगी,जनसन्देश, गुरुकुल वाणी तथा अन्य समाचार पत्र पत्रिकाओं में ई-पत्रिका– लेखनी, सृजनगाथा,साहित्य रागिनी, लेखक मंच, पूर्वाभास आदि में भी कवितायेँ प्रकाशित |संपर्क- 139 गंगापुरम कॉलोनी, किशोरीलाल डिग्री कॉलेज के सामनेए.डी.ए. रोड, नैनी, पो.अ. अरैल, नैनी इलाहाबाद, उ.प्र.- 211008
एक कोशिश
Tuesday, May 20, 2014
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Saturday, May 3, 2014
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